कंगना रनौत की इमरजेंसी के सपोर्ट में उतरे सनोज मिश्रा .! बोले कि फ़िल्म का विरोध अभिव्यक्ति की आज़ादी पर हमला है। 

 

Mumbai: फ़िल्म जगत में इनदिनों कंगना रनौत की फ़िल्म इमरजेंसी को लेकर काफी बवाल मचा हुआ है , इस फ़िल्म ने देश विदेश में सुर्खियां बटोरकर सबका ध्यान अपनी ओर आकृष्ट करने का काम किया है । इस फ़िल्म की कथा वस्तु देश के अंदर 1975 में लगे इमरजेंसी और उसके दुष्परिणामों पर आधारित है। इस फ़िल्म की पृष्ठभूमि को लेकर देश की राजनीति दो धड़े में विभाजित हो गई है और कुछ लोग जबरदस्ती इस फ़िल्म को बैन करने की मांग कर रहे हैं , जबकि कंगना रनौत की टीम का कहना है कि हमने तो एक सत्य घटना पर आधारित फिल्म बनाई है इसमें किसी को आपत्ति ही नहीं होनी चाहिए। अब इसी घटना पर फ़िल्म इंडस्ट्री में भी काफी बवाल हुआ पड़ा है और पिछले दिनों अपनी फिल्म " द डायरी ऑफ वेस्ट बंगाल " से चर्चा में आये निर्देशक सनोज मिश्रा ने भी इमरजेंसी के समर्थन में बोलते हुए देश के अंदर इस फ़िल्म का विरोध करने वालों पर हमला बोला है। सनोज मिश्रा अपने एक सोशल मीडिया पोस्ट में लिखते हैं कि,

"फिल्म अगर समाज का आइना है तो इस आईने में लोग अपनी शक्ल क्यों नही देखना पसंद करते या फिर ये सिर्फ एक घिसा पिटा जुमला है ? आज की युवा पीढ़ी पिज्जा बर्गर और बीयर बार वालों को नहीं पता होगा कि कांग्रेस ने अपनी तानाशाही के लिए देश में आपातकाल लगाया था , देश में हुई उस भयँकर त्रासदी को भुलाया नही जा सकता ! लेकिन जब वहीं कंगना रनौत जी उस त्रासदी के ऊपर फिल्म लेकर आ जाती है तो गटर छाप वामपंथी और खुद को धर्मनिरपेक्ष कहने वाले कीड़े बिलबिलाने लगते है ।

कंगना रनौत जी वास्तव में आयरन लेडी हैं उनका जीवन हमेशा बेबाक रहा है चाहे वो फिल्म इंडस्ट्री हो या राजनीति उन्होंने हमेशा लीक से हटकर अपनी पहचान बनाई है, जो इस देश की महिलाओं के लिए एक मिसाल है । इस इंडस्ट्री मे करीना बनाना आसान है लेकिन कंगना बनने के लिए अंगारों पर चलना होता है,  मैं सैल्यूट करता हूं उनकी हिम्मत को जो उन्होंने किसी माफिया, किसी भ्रष्ट राजनेता के सामने हार नही मानी और निडर होकर अपना रास्ता बनाया है। आज उसी निडरता से उन्होंने फिल्म "इमरजेंसी" का निर्माण किया है जिसके लिए उन्होंने अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया, कंगना जी के इस दर्द और तकलीफ को मुझसे बेहतर और कौन समझ सकता है मित्रों ? मेरे खुद के साथ पिछले कुछ महीनों में घटी हुई घटनाएं मेरे लिए एक त्रासदी जैसी थी, एक फिल्मकार अपना काम करता है न की प्रोपोगंडा!

ये काम राजनेताओं का होता है,  "द डायरी ऑफ वेस्ट बंगाल" बनाकर मैने अपना काम पूरी ईमानदारी से किया । लेकिन मेरे फ़िल्म के ही निर्माता वसीम रिजवी जैसे राजनैतिक नौटंकीबाज ने खुद को राज्यसभा सदस्य बनाने के लिए और फिल्म को चर्चा में लाकर पैसा कमाने के लिए मेरी हत्या कराने की साजिश की । फिर मुझे बंगाल के अज्ञात गुंडों के चंगुल और वसीम रिजवी के बिछाए जाल से भागकर वाराणसी बाबा विश्वनाथ की शरण में जाना पड़ा।

अब देखना यह है कि आने वाले दिनों में यह मुहिम कितना रँग लाती है और फ़िल्म को लेकर आम जनता की क्या राय बनती है , क्योंकि जहां सनोज मिश्रा जैसे अधिकांश लोग फ़िल्म इमरजेंसी के समर्थन में आगे भी आ रहे हैं तो वहीं कुछ ऐसी विचारधारा के भी लोग हैं जो लगातार देश के अंदर एक गलत नैरेटिव फैलाकर इस फ़िल्म का विरोध करना भी शुरू कर दिए हैं। फ़िल्म इमरजेंसी कंगना रनौत की एक बेहद महत्वकांक्षी फ़िल्म भी है। आने वाला समय इस फ़िल्म के लिए अग्निपथ के समान ही होने वाला है । यह जानकारी फ़िल्म प्रचारक संजय भूषण पटियाला ने मुम्बई से दिया।