Tigers in Madhya Pradesh: मध्य प्रदेश में बाघों की संख्या बढ़ने पर विशेषज्ञों ने दिया नए वन क्षेत्र तलाश करने का सुझाव

 

संवाददाता, अंकित कुमार

Tigers in Madhya Pradesh: देश और मध्य प्रदेश में बाघों की बढ़ती संख्या और उनके लिए कम पड़ते वन क्षेत्र को लेकर देश-विदेश के विशेषज्ञों ने चिंता जताई है। उन्हें आशंका है कि इन स्थितियों में बाघों के बीच संघर्ष और बाघ-मानव द्वंद्व की घटनाएं बढ़ेंगी, जिसका नुकसान बाघों को होगा। ऐसे में बाघों के लिए नए वन क्षेत्रों की तलाश और उन्हें विकसित करने की दिशा में अभी से काम शुरू कर देना चाहिए।

विशेषज्ञ यह भी कहते हैं कि बीमार या घायल बाघ इलाज के लिए लाए जाते हैं, तो उन्हें स्वस्थ होने पर संरक्षित वन क्षेत्रों के बजाय बाघ विहीन क्षेत्रों में छोड़ा जाना चाहिए। इनमें सामान्य वनमंडल के वे स्थान हो सकते हैं, जहां बाघों के लिए भोजन, पानी की पर्याप्त व्यवस्था हो और उनकी मानव आबादी से दूरी भी हो।

कान्हा टाइगर रिजर्व में 27 से 29 अप्रैल तक वन्यप्राणी संरक्षण पर अंतरराष्ट्रीय कार्यशाला आयोजित की गई थी। मध्य प्रदेश में 41 साल बाद आयोजित इस तरह की कार्यशाला में देश-विदेश के दो सौ से अधिक वन्यप्राणी विशेषज्ञ शामिल हुए। कार्यशाला में चीता परियोजना और बाघ संरक्षण प्रमुख मुद्दे रहे। अलग-अलग सत्रों में विशेषज्ञों ने अपनी राय दी।

विशेषज्ञों ने बाघों की सुरक्षा पर चिंता भी जताई। उनका कहना था कि अब बाघों की संख्या के अनुपात में ही उनकी आबादी बढ़ेगी। यदि उनके लिए अलग क्षेत्रों की व्यवस्था नहीं की गई, तो आपसी संघर्ष भी बढ़ेगा। वे जंगल से बाहर निकलेंगे, तो मनुष्य के लिए खतरा बनेंगे इसलिए बाघों के लिए नए स्थान तलाश करने पड़ेंगे। उन्हें तैयार भी करना पड़ेगा और कुछ बाघों को वहां छोड़ना पड़ेगा। विशेषज्ञों के अनुसार बाघ कई बार 200-250 किमी तक चले जाते हैं। उनके लिए सुरक्षित गलियारा भी बनाना पड़ेगा ताकि वे मानव आबादी से दूर रहकर विचरण कर सकें। बता दें कि देश में अब 3,167 और मध्य प्रदेश में 526 (2018 की गणना) बाघ हैं।

बता दें, राज्य सरकार ने कारीडोर विकास और नए क्षेत्र की तलाश पहले से ही शुरू कर दी है। विशेषज्ञों द्वारा बताए कुछ बिंदु केंद्र सरकार स्तर के हैं, उन्हें केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को भेजा जाएगा। वन्यप्राणी मुख्यालय इसका प्रस्ताव तैयार कर रहा है।

बाघों को जंगल से बाहर निकलने से रोकने के लिए विशेषज्ञों ने संरक्षित क्षेत्र और सामान्य वनमंडलों में घास के मैदान तैयार करने पर भी जोर दिया है। उनका कहना है कि घास के मैदान होंगे, तो शाकाहारी वन्यप्राणियों की संख्या बढ़ेगी, जो बाघों को जंगल में रोके रखने के लिए जरूरी है।

विशेषज्ञों ने बाघ सुरक्षा के लिए नए स्थान तलाश करने की सलाह दी है। वे यह भी कहते हैं कि संरक्षित क्षेत्रों से बाहर भी सुरक्षित स्थानों पर बाघ शिफ्ट किए जाने चाहिए। अब राज्य सरकार निर्णय लेगी।