कोरोना टीके से ही आया काबू में 200 करोड़ वैक्सीन लगाना बड़ी सफलता, Expert
भारत ने अब तक 12 वर्ष से अधिक आयु के 200 करोड़ लोगों को टीका लगाया है. जब से भारत ने अपना टीकाकरण अभियान शुरू किया, तब से इस बेंचमार्क तक पहुंचने में देश को 18 महीने से अधिक का वक्त लगा है.
पिछले साल 16 जनवरी को देश भर में टीकाकरण अभियान शुरू किया गया, जिसके पहले चरण में स्वास्थ्य कर्मियों को टीके लगाए गए. पिछले साल 2 फरवरी से फ्रंटलाइन वर्कर्स और 1 अप्रैल से 45 वर्ष से अधिक आयु के सभी लोगों के लिए टीकाकरण शुरू हुआ था.भारत ने 10 अप्रैल को 18 वर्ष से ऊपर की आयु के सभी लोगों को कोविड-19 टीकों की एहतियाती खुराक देना शुरू किया.
इतनी बड़ी आबादी को टीका लगाने में क्या चुनौतियां थीं? हमने कैसे किया?
कई चुनौतियां थीं. एक बड़ा मुद्दा यह था कि इतनी बड़ी आबादी के लिए वैक्सीन कैसे उपलब्ध कराई जाए, इसे प्राथमिकता कैसे दी जाए? यह हमने सफलतापूर्वक मैनेज किया. दूसरा, टीकों की सुरक्षा विशेष रूप से यदि हम बच्चों के टीकाकरण को देखें. ऐसा इसलिए क्योंकि शुरुआती चरण में क्लिनिकल परीक्षण केवल वयस्क आबादी पर किए गए थे. हमारे पास पर्याप्त डेटा उपलब्ध नहीं था, लेकिन धीरे-धीरे और लगातार चीजें बेहतर होने लगी हैं. तीसरा, वैक्सीन को लेकर लोगों में हिचकिचाहट थी. हमारा देश एक लोकतांत्रिक देश है, इसलिए जाहिर तौर पर कोई जबरदस्ती नहीं हुई. इसके बावजूद टीकाकरण अभियान के प्रति लोगों की प्रतिक्रिया खराब नहीं थी. हमने 60 वर्ष से अधिक आयु के लगभग 90 प्रतिशत लोगों को टीका लगाने में कामयाबी हासिल की. लेकिन उसके बाद गिरावट आई जब दूसरे शॉट की बारी आई. इसका एक प्रमुख कारण यह हो सकता है कि लोगों के बीच ऐसे संदेश की कमी थी जो जनता को समझाए कि दोनों डोज उनके लिए आवश्यक है.
इसके साथ तकनीकी चुनौतियां भी थीं. चूंकि सब कुछ कोविन एप्प के माध्यम से हो रहा था, इसलिए बहुत से लोग नहीं जानते थे कि इस पर पंजीकरण कैसे किया जाता है. इससे कई लोगों को शॉट लेने में दिक्कत हुई.
देश में नेजल या संक्रमण-रोधी टीके भी नहीं हैं. नेज़ल वैक्सीन संक्रमण रोकने में कारगर हो सकता था लेकिन उन्हें बनाना बेहद मुश्किल है और यह आश्चर्य की बात नहीं है कि भारत में अभी तक ऐसा नहीं हुआ है.
क्या हमने टीकाकरण के बारे में स्वदेशी अध्ययन के संबंध में कोई आधार बनाया है?
हां, कई स्वदेशी अध्ययन हुए हैं और इस मामले में हमने काफी हद तक संतोषजनक प्रगति की है. कोविशील्ड (Covishiled) पर क्लिनिकल परीक्षण हुए हैं, इनमें से कुछ भारत में हुए हैं. कोवैक्सीन (Covaxin) के सभी परीक्षण देश में हुए. कोर्बेवैक्स (Corbeaux) के परीक्षण भारत में हुए और ZyCoV-D के लिए भी यही सच है. आखिरकार, इन्हें प्रकाशित किया जाएगा, इनमें से कुछ पहले ही अखबारों और पत्रिकाओं में छ्प चुके हैं. सार्वजनिक स्वास्थ्य नीति विकसित करने के लिए क्लीनिकल ट्रायल डेटा उपयोगी है. डेटा बिखरे पड़े हैं, जैसे कोविशील्ड और कोवैक्सिन के दो शॉट्स के बाद कौन सा अधिक कारगर है यह जानने के लिए सीएनसी (CNC) ने वैक्सीन मिक्सोलॉजी के परिणाम की जांच की है. क्या हमें अलग तरह से बनाए गए या मिलते-जुलते टीके की आवश्यकता है? इन सवालों के जवाब भी हमें मिलेंगे. हाल ही में पुणे की जेनोवा बायोफार्मास्युटिकल्स के mRNA कोविड -19 वैक्सीन को मंजूरी मिल गई है, जो गेम चेंजर साबित होने जा रहा है.
कोविड -19 टीकाकरण की स्थिति 2030 में क्या होगी?
यह वायरस पर निर्भर करता है. अगर हम भीड़-भाड़ वाली जगहों पर मास्क नहीं लगाते हैं तो हम वायरस के फैलाव में मदद करने जा रहे हैं. लेकिन अगर हम COVID-19 प्रोटोकॉल का पालन करना जारी रखते हैं, तो देश निश्चित रूप से एंडेमिक स्टेज में पहुंच जाएगा. चूंकि अधिकांश आबादी का टीकाकरण किया जाएगा, इसलिए भविष्य में बड़े संकट पैदा नहीं हो सकते. लेकिन म्यूटेशन और वायरस का रूप बदलना इसकी प्रकृति है. यदि कोई बड़ा परिवर्तन होता है, जैसा कि हमने फ्लू के वायरस में परिवर्तन देखा तो यह पता लगाना होगा कि हमारा वर्तमान टीकाकरण हमारी कितनी रक्षा करेगा. अभी तक SARS-CoV-2 के साथ ऐसे कोई संकेत नहीं मिले हैं.
क्या हमने कोरोना महामारी के खिलाफ लड़ाई में वैक्सीन लाने में देरी की?
हां, हम और बेहतर कर सकते थे. एक देश के तौर पर हमारे पास न तो अच्छा बुनियादी ढांचा है और न ही हमारे पास सर्वोत्तम मानव संसाधन हैं. हम स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में निवेश करने में भी विश्वास नहीं करते हैं और इस दृष्टिकोण को बदलने की जरूरत है. सार्वजनिक स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे की गंभीर कमी है. हमारा काम आशा वर्कर्स के भरोसे चलता हैं और उन पर अधिक बोझ डालते हैं. यह निहायत ही नामुनासिब है. यहां तक कि अगर हमारे पास पहले दिन बहुत सारे टीके होते तो हमने जितना किया, उससे अधिक वितरित नहीं कर पाते.
इसने हमें सिखाया है कि हमें विज्ञान में निवेश करने की जरूरत है. यह बेहद सूक्ष्म बात है. अगर हम पहले से ही दुनिया भर में कुछ खास जगहों पर mRNA वैक्सीन विकसित करने पर काम नहीं कर रहे होते, तो हमें ये समय पर नहीं मिलते. जब तक इस महामारी ने हम पर हमला नहीं किया, तब तक हमारे पास एक भी mRNA वैक्सीन नहीं था. हमें तत्काल लाभ देखे बिना विज्ञान में निवेश करना चाहिए. हमें संस्थानों की मदद करनी चाहिए ताकि वे अपना शोध जारी रख सकें. अफसोस की बात है कि इस संबंध में भारत की फंडिंग निराशाजनक रही है. यदि हम इन टीकों के पीछे लगने वाले विज्ञान में निवेश नहीं करते हैं तो भारत कैसे आत्मनिर्भर और सभी टीकों के निर्माण का प्रमुख केंद्र बन सकता है.
हमें सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र को मजबूत करने और इसे बनाए रखने की आवश्यकता है. हमने निजी उद्यमों को स्वास्थ्य सेवा संभालने की इजाजत दी है. प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा स्तर पर हमारे पास केवल कॉन्ट्रैक्ट एम्प्लॉयमेंट है. हमें सरकारी स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में अच्छी तरह से प्रशिक्षित मैनपावर बनाए रखना चाहिए.

