Netaji Subhash Chandra Bose Jayanti 2022: नेताजी की 125वीं जयंती आज, जानें Subhash Chandra Bose की कहानी

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Netaji Subhash Chandra Bose Jayanti 2022: नेताजी की 125वीं जयंती आज, जानें Subhash Chandra Bose की कहानी

नई दिल्ली: आज सुभाष चंद्र बोस (Subhash Chandra Bose) की 125वीं जयंती है। नेताजी  (Netaji) का जन्म 23 जनवरी, 1897 को ओडिशा के कटक में जानकीनाथ बोस और प्रभावती देवी के यहां हुआ था। नेताजी सुभाष चंद्र बोस के पिता बेटे को आईसीएस (भारतीय सिविल सेवा) का अफसर बनाना चाहते थे। इसकी तैयारी के लिए सुभाष लंदन चले गए ।

- 1920 में सुभाष ने आईसीएस की परीक्षा में चौथा स्थान प्राप्त किया, लेकिन अंग्रेजों की गुलामी करना उन्हें मंजूर नहीं था और उन्होंने आजाद हिंद फौज का नेतृत्व कर गठन कर अंग्रेजों से लोहा लेने की ठान ली।

- सुभाष चंद्र बोस ने ही ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा’ का नारा दिया, जो भारतीय युवाओं में एक नया जोश भर गया।

- सुभाष के पिता प्रतिष्ठित सरकारी वकील थे। वह बंगाल विधानसभा के सदस्य भी रह चुके हैं और ब्रिटिश सरकार ने उन्हें ‘रायबहादुर’ के खिताब से भी नवाजा था।

- पिता जानकीनाथ अपने बेटे को एक भी ऊंचे ओहदे पर देखना चाहते थे । सुभाष ने कटक के प्रोटेस्टेंट यूरोपियन स्कूल से प्राथमिक शिक्षा ग्रहण की।

- 1916 में जब सुभाष प्रेसीडेंसी कॉलेज से दर्शनशास्त्र में बीए कर रहे थे, तभी किसी बात पर छात्रों और अध्यापकों के बीच झगड़ा हो गया।

- सुभाष ने छात्रों का साथ दिया, जिस कारण उन्हें कॉलेज से एक साल के लिए निकाल दिया गया और परीक्षा देने पर भी प्रतिबंध लगा दिया।

- 49वीं बंगाल रेजीमेंट में भर्ती होने के लिए उन्होंने परीक्षा दी, लेकिन आंखों की दृष्टि कमजोर होने को चलते वह अयोग्य करार दे दिए गए।

- सुभाष चंद्र स्वामी विवेकानंद और महर्षि अरविंद घोष से सुभाष बहुत प्रभावित थे। वह अपने देश को अंग्रेजों के अत्याचार से मुक्त कराना चाहते थे। रवींद्रनाथ ठाकुर की सलाह पर सुभाष भारत आने पर सर्वप्रथम मुंबई गए और गांधी जी से मिले। गांधी ने उन्हें कोलकाता जाकर देशबंधु चित्तरंजन दास ‘दास बाबू’ के साथ काम करने की सलाह दी।

- 1922 में दासबाबू ने कांग्रेस के अंतर्गत स्वराज पार्टी की स्थापना की। कोलकाता महापालिका का चुनाव लड़कर दासबाबू महापौर बन गए और सुभाष को उन्होंने महापालिका का प्रमुख कार्यकारी अधिकारी बनाया। युवा सुभाष जल्द ही देशभर में लोकप्रिय नेता बन गए।

- 23 अगस्त, 1945 को टोकियो रेडियो ने बताया कि सैगोन आते वक्त 18 अगस्त, 1945 को एक विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया, जिसमें नेताजी गंभीर रूप से जल गए और ताइहोकू सैन्य अस्पताल में उन्होंने दम तोड़ दिया। हालांकि इस घटना की पूरी तरह से कभी पुष्टि नहीं हो पाई और उसका रहस्य अभी तक बरकरार है।

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